अरे उसके चेहरे के फीचर अच्छे हैं, पर रंग सांवला है! यह रंगों का भेदभाव आज भी सुंदरता के मानदंडों को तय करता है। विभिन्न प्रकार के कैम्पैन चलाने के बावजूद गोरी त्वचा को लेकर आज भी लोग क्रेजी हैं। जबकि खूबसूरती किसी शेड से डिफाइन नहीं होती। गोरेपन की आपकी दीवानगी को भुनाने के लिए बाजार में कई प्रोडक्ट मौजूद हैं। इतना ही नहीं कई प्रकार के स्किन ट्रीटमेंट भी गोरेपन का दावा करते हैं। पर असल में ये सब आपकी त्वचा पर कहर बरपा सकते हैं। जानना चाहती हैं कैसे ? तो बस इसे पढ़ती रहें।
क्रीम लगाना बुरा नहीं होता है। अपनी त्वचा की देखभाल के लिए आप डे क्रीम, नाइट क्रीम, सन्स्क्रीन या मॉइस्चराइज़र का उपयोग करती ही हैं। लेकिन यह देखना जरूरी है कि क्रीम किस वजह से लगाई जा रही है। साथ ही इसका उपयोग शरीर के किस हिस्से पर किया जा रहा है और इसमें क्या मिला हुआ है।
बाजार में ऐक्ने, पिम्पल और ड्राई स्किन के लिए क्रीम और अन्य ब्यूटी प्रोडक्ट्स उपलब्ध हैं। लेकिन इसके साथ ही त्वचा के रंग को हल्का करने वाले क्रीम और तकनीक भी आपको मिल सकते हैं। जरूरी बात यह हैं कि आपको इनके सामग्री और संभावित साइड इफेक्ट के बारे में पता होना चाहिए। इन क्रीमों में पैराबिन नामक खतरनाक पदार्थ पाए जाते हैं, जो आपकी सेहत को प्रभावित कर सकते हैं।
विश्व स्वास्थ्य संगठन का यह दावा है की चार में से तीन महिलाएं बिना डॉक्टर की सलाह के ब्लीच और स्किन वाइटनिंग क्रीम का इस्तेमाल करती हैं।
आपकी त्वचा की रंगत मेलेनिन के स्तर से तय की जाती है। गोरा करने वाली क्रीम स्किन के मेलेनिन को प्रभावित करती हैं और आपको हल्का रंग देती हैं। फेयरनेस क्रीम आपके शरीर के मेलेनिन को कम करती है और आपको गोरी त्वचा मिल सकती है।
इन क्रीमों में मुख्य तौर पर दो तरह के ब्लीचिंग एजेंट पाए जाते हैं- हाइड्रोक्विनोन (hydroquinone) और कॉर्टिकोस्टेरॉइड्स (corticosteroids)। त्वचा विशेषज्ञों के मुताबिक आपके द्वारा इस्तेमाल किए जाने वाली क्रीम में हाइड्रोक्विनोन (hydroquinone) की मात्रा 4% से कम होनी चाहिए। इसके उच्च स्तर से खुजली, जलन और ऐलर्जी की समस्या हो सकती है।
स्किन वाइटनिंग क्रीम में मौजूद ये दो मुख्य सामग्री आपके मेलेनिन को प्रभावित कर आपको गोरी त्वचा देते हैं।
डॉक्टरों का मानना है कि जिन क्रीम में हाइड्रोक्विनोन (hydroquinone) होता है, उनको दिन में केवल दो बार ही लगाना चाहिए। इसका उपयोग आप हाथों और पैर पर ही कर सकते हैं। चेहरे पर लगाने से ये खतरनाक दुष्प्रभाव दे सकते हैं। इसे 8 से 12 हफ्तों तक ही लगाना चाहिए। कई महिलाएं लंबे समय तक इन क्रीमों का उपयोग करती हैं, जिसके कारण उन्हें साइड इफेक्ट का सामना करना पड़ता है।
वहीं दूसरी ओर कॉर्टिकोस्टेरॉइड्स वाली क्रीमों को नाज़ुक हिस्सो पर लगाया जा सकता है, क्योंकि ये क्रीम खुजली जैसी समस्या के इलाज के लिए इस्तेमाल होती है। यह ज़रूरी है कि आप डॉक्टर से सलाह लेने के बाद ही ऐसे उत्पादों का इस्तेमाल करें और उनके बताए निर्देशों का पालन करें। अगर आप ऐसा नहीं करते, तो इसके गंभीर परिणाम भुगतने पड़ सकते हैं।
नेशनल हेल्थ सर्विस के अनुसार त्वचा को हल्का करने वाली क्रीम के साइड इफेक्ट्स में शामिल हो सकते हैं:
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कस्टमाइज़ करेंत्वचा का रंग प्राकृतिक होता है और इसे बदलना या हल्का करने का ख्याल अनुचित है। हर रंग प्यारा है और आपके अंदर की खूबसूरती इस दुनिया को सुंदर बनाती है। तो लेडीज, बाजार के लुभावने विज्ञापनों और ब्यूटी के स्टीरियोटाइप की शिकार न बनें। बाजार में उपलब्ध इन क्रीमों का उपयोग करने से आप प्राकृतिक त्वचा को नुकसान पहुंचा सकती हैं। इसलिए स्वस्थ आहार, व्यायाम और घरेलू नुस्खों का इस्तेमाल कर अपनी नेचुरल स्किन को पैंपर करें।
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