Celebrating Divorce : एक टॉक्सिक रिश्ते में घुटते रहने से अच्छा है, अलग होने का जश्न मनाना

तमिल टीवी अभिनेत्री शालिनी के डाइवोर्स फोटोशूट के बाद से सोशल मीडिया पर हंगामा मचा हुआ है। मेंटल और इमोशनल हेल्थ के लिए किसी टॉक्सिक रिश्तें में फंसे रहने से तो बेहतर ही है अपनी आज़ादी का जश्न।
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अपनी पोस्ट में शालिनी कहती हैं कि तलाक लेना फेलियर नहीं है। चित्र : Insta/Shalu
योगिता यादव Updated: 2 May 2023, 19:29 pm IST
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“तलाक की प्रक्रिया इतनी जटिल, शर्मनाक और तनावग्रस्त है कि कई बार आत्महत्या करने का भी ख्याल आया। लगता था कि शादी करना ही गुनाह हो गया। आपका व्यवहार, चरित्र और बुद्धिमानी कई-कई बार, कई जगहों पर लांछित की जाती है। कमाल यह कि इसका खर्च भी आप ही उठा रहे हाेते हैं। सिर्फ इतना ही नहीं एक इंटरव्यू के दौरान मुझे इसलिए खारिज कर दिया गया कि मेरा तलाक का केस चल रहा है। सोचिए तलाक को लेकर अब भी हमारे समाज की मानसिकता क्या है!” एक बड़ी कॉरपोरेट कंपनी में नौकरी करने वाली वंदना अपनी तकलीफ बताते हुए भावुक हो जाती हैं। वे मानती हैं कि टॉक्सिक रिश्ते को ढोने से अलग हो जाना ज्यादा बेहतर है। जबकि ट्रोलर इन दिनों तमिल अभिनेत्री शालिनी के पीछे पड़े हैं। जिन्होंने तलाक (Celebrating Divorce) के बाद फोटो शूट करवाया और तलाक को फेलियर मानने से इनकार कर दिया।

डाइवोर्स फोटो शूट : तलाक कोई फेलियर नहीं है

रेड गाउन में एक लड़की खुशी-खुशी अपनी शादी की फोटो फाड़ते हुए तलाक का जश्न मना रही है। इन तस्वीरों के पोस्ट होते ही शादियों में घनिष्ठतम आस्था रखने वाला समाज आहत हो गया। इसके बाद से ही तमिल टीवी अभिनेत्री शालिनी को ट्रोल किया जाने लगा है। जबकि तलाक की लंबी, थकाऊ और अपमानित कर देने वाली प्रक्रिया से गुजर रहे जोड़े इस खुशी को महसूस कर सकते हैं।

शालिनी ने अपनी पोस्ट में लिखा है –

एक तलाकशुदा महिला का संदेश उन लोगों के लिए जो खुद को वॉइसलेस फील करते हैं। आपको खुश रहने का अधिकार है, इसलिए एक खराब शादी को छोड़ना बुरा नहीं है। आपकी जिंदगी पर आपका अधिकार है, तो कम पर समझौता क्यों किया जाए। अपने बच्चों के बेहतर भविष्य के लिए आपको जरूरी बदलाव करने चाहिए।

तलाक कोई फेलियर नहीं है!!! यह आपके और आपके जीवन में सकारात्मक बदलाव लाने वाला एक महत्वपूर्ण मोड़ है।

शादी से अलग होकर अकेले खड़े होने के लिए बहुत साहस की जरूरत होती है। इसलिए मैं उन सभी बहादुर महिलाओं को यह समर्पित करती हूं।

आठ महीने की शादी तोड़ने के लिए मुझे 4 साल लड़ना पड़ा 

कॉरपोरेट कंपनी में कम्युनिटी मैनेजर वंदना कहती हैं, “ट्रोलर्स को थोड़े ही पता है कि हम अपने जीवन में कितना तनाव झेल चुके हैं। मेरी शादी बस आठ महीने रही थी और उसके बाद मुझ पर अश्लीलता, हिंसा, स्मोकिंग, मर्डर की कोशिश जैसे न जाने कितने आरोप लगाए गए। मैं उस घर में लौटना नहीं चाहती थी, वे भी मुझे रखने को तैयार नहीं थे। इसके बावजूद इस प्रक्रिया में मेरा लाखों रुपया और चार साल बर्बाद हुए।”

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Meri shadi ne mujhe sukh se zyada tanav diya
मेरी शादी ने मुझे इतना सुख नहीं दिया जितना तनाव दिया। चित्र : Vandana

“दिल्ली से कानपुर और कानपुर से ओरैया जाना, और उन लोगों की शक्ल देख लेना ही मुझे इतने तनाव से भर देता था कि मुझे रिकवर होने में कई दिन लग जाते थे। जब मेरा तलाक हुआ तो मेरे योगा टीचर और मेरे दोस्तों ने मुझे पार्टी दी कि अब मुझे उसे तनाव ग्रस्त प्रक्रिया का सामना नहीं करना पड़ेगा। वास्वत में ट्रोलर्स खुद कुंठित होते हैं, वे किसी और को खुश होते नहीं देख सकते। जहां दहेज और घरेलू हिंसा स्वीकार्य है, वहां तलाक का जश्न मनाना लोगों को बुरा लग रहा है।”

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बंधन से मुक्त होना खुशी देता ही है

अणु शक्ति सिंह लेखिका और पत्रकार हैं। वे कहती हैं, “तलाक का मामला इकहरा नहीं है। इसके बहुत सारे पहलू हैं। अब भी हमारे समाज में यह एक टैबू है। एक ऐसा रिश्ता, जिसमें दोनों में से कोई भी खुश नहीं है, उसके बने रहने का क्या फायदा। मैं अपने अनुभव से कह सकती हूं कि एक खराब रिश्ते से निकलना किसी बंधन से आजादी मिलने जैसी खुशी देता है। इसलिए कि यह मेरा फैसला है, मैंने इसे चुना है। मैं उस सेटअप में नहीं रहना चाहती थी, जिसमें मुझे रहने को विवश किया जा रहा था।

ये पितृसत्तात्मक समाज की सोच है कि किसी भी कीमत पर शादी बनी रहनी चाहिए, ये लाशों पर भी शादी बचाने को तैयार रहते हैं, कि दुख भोगते रहे, बर्दाश्त करते रहो, पर शादी में बने रहो। जबकि अगर आप साथ में खुश नहीं है , तो आप दोनों के अपने लिए एक बेहतर भविष्य चुनने का अधिकार है। हां ये उनके लिए तनावपूर्ण हो सकता है, जिन पर तलाक थोपा गया हो, जैसे शादी थोपी जाती है।”

शादी हो सकती है, तो तलाक भी हो सकता है

सुप्रीम कोर्ट की अधिवक्ता कमलेश जैन अपने बरसों के अनुभव के आधार पर कहती हैं, “अब तलाक को लेकर परिवारों में वैसा तनाव नजर नहीं आता, जैसे बीस साल पहले दिखाई देता था। अब दोनों परिवार यह मानने लगे हैं कि अगर शादी हो सकती है, तो तलाक भी हो सकता है। कानूनी प्रक्रिया ऐसी है कि घरेलू हिंसा, स्त्री धन, मासिक भत्ता, बच्चों का अधिकार , प्रोपर्टी का निर्णय, एकमुश्त राशि, तलाक आदि कई केस चलते हैं और उनके लिए दोनों ही पक्षों को भागना पड़ता है। कितनों की नौकरियां छूट जाती हैं, इसी सब में। तनाव तो होता ही है।”

वे आगे कहती हैं, “कभी-कभी तो लड़कियों के परिवार से ज्यादा आशंका लड़के के परिवार में होती है। वो इसलिए क्योंकि ज्यादातर मुकदमे पढ़ी-लिखी, शहरी लड़कियों की तरफ से फाइल किए जाते हैं। बहुत साल खिंच जाने के बाद लड़का और लड़की दोनों ही इससे तंग होने लगते हैं।

लोअर कोर्ट, हाई कोर्ट, सुप्रीम कोर्ट तक तलाक के मामलों से भरे पड़े हैं। भले ही दुनिया भर की तुलना में हमारे यहां यह अनुपात कम हो, पर तब भी पिछले बीस वर्षों में इनमें खासा इजाफा हुआ है। अदालतें छोड़िए मीडिएशन सेंटर्स में भी, सिर्फ दिल्ली में ही 1500 मुकदमे पेंडिंग हैं।

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जो रिश्ता रिपेयर नहीं हो सकता , उसे छोड़ देना अच्छा है। चित्र एडॉबीस्टॉक।

इसलिए सुप्रीम कोर्ट ने भी 61 पन्नों की जजमेंट में यह कहा है कि “जहां रिश्ते में ऐसी दूरी आ चुकी है कि जिसे रिपेयर करने की गुंजाइश ही नहीं है, वहां मामले को बरसों बरस खींचते रहना सही नहीं है। इसमें दोनों ही पक्षाें की उम्र और ऊर्जा खर्च हो चुकी होती है। इससे अच्छा है कि आप लाेअर कोर्ट में केस दाखिल करें और सुप्रीम कोर्ट में आकर रजामंदी से तलाक ले लें।”

तलाक पर क्या है सर्वोच्च न्यायालय का ताजा निर्णय

शिल्पा शैलेश बनाम वरुण श्रीनिवासन मामले की सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट की 5-न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने सोमवार को यह फैसला सुनाया। जिसमें वह संविधान के अनुच्छेद 142 (1) के तहत “पूर्ण न्याय” (under Article 142(1) of the Constitution to dissolve a marriage) करने के लिए अपनी पूर्ण शक्ति का प्रयोग इस आधार पर विवाह को भंग करने के लिए कर सकती है, कि यह बिना किसी शर्त के टूट गया था। पक्षकारों को पारिवारिक न्यायालय में भेजना जहां उन्हें आपसी सहमति से तलाक की डिक्री के लिए 6-18 महीने तक इंतजार करना होगा।

एक टॉक्सिक संबंध आपस मे खटास पैदा कर सकते है। चित्र: शटरस्टॉक
एक टॉक्सिक संबंध आपस मे खटास पैदा कर सकते है। चित्र: शटरस्टॉक

न्यायमूर्ति एस के कौल की अगुवाई वाली खंडपीठ ने कहा कि अदालत इस शक्ति का प्रयोग करते हुए, हिंदू विवाह अधिनियम (एचएमए), 1955 के तहत तलाक के लिए अनिवार्य छह महीने की प्रतीक्षा अवधि को माफ कर सकती है और इस आधार पर विवाह के विघटन की अनुमति दे सकती है। भले ही पार्टियों में से कोई एक इच्छुक न हो। (शिल्पा शैलेश बनाम वरुण श्रीनिवासन मामला)

कुछ के लिए ट्राॅमा भी है

फोर्टिस हेल्थ केयर में हेड मेंटल हेल्थ डिपार्टमेंट एंड बिहेवियरल साइंसेज कामना छिब्बर कहती हैं, “मैं इसे लेकर आशंकित हूं, कि क्या वाकई सभी लड़कियां इससे खुश होती होंगी? मेरे पास बहुत सारे मामले ऐसे आते हैं, जिनके लिए तलाक एक ट्रॉमा है। रिश्ता टूटना की प्रक्रिया किसी भी मानसिक और भावनात्मक रूप से चोट पहुंचा सकती है। पर अपनी मेंटल हेल्थ के लिए आपको वही करना चाहिए, जो आपके हित में हो।”

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लेखक के बारे में

कंटेंट हेड, हेल्थ शॉट्स हिंदी। वर्ष 2003 से पत्रकारिता में सक्रिय। ...और पढ़ें

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