क्या सोशल मीडिया आपको ईटिंग डिसऑर्डर का शिकार बना रहा है? जानने के लिए इसे जरूर पढ़ें

क्या आप बिल्कुल वैसा बनने की कोशिश में लगे हैं जैसा आपके सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर आपको बनाना चाहते हैं?, यदि हां, तो शायद आप ईटिंग डिसऑर्डर के शिकार हो चुके हैं।
जल्दी डिनर करने से नहीं होती डायबिटीज. चित्र : शटरस्टॉक
Dr Vinod Kumar Updated: 24 Nov 2023, 05:22 am IST
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विभिन्न सोशल मीडिया हैंडल्स पर लगातार जारी ईटिंग, डायटिंग और फूड रिलेटिड पोस्ट ने हमारे लुक, उपस्थिति और वजन संबंधी आग्रहों और ऑबसेशन में बढ़ोतरी की है।
क्लिनिकल टर्म में जब कोई व्यक्ति अपने वजन, उपस्थिति, डायटिंग के संदर्भ में जरूरत से ज्यादा सोचने और परेशान होने लगता है, तो इसे समग्रता में ईटिंग डिसऑर्डर यानी भोजन संबंधी विकार का नाम दिया गया है।

ईटिंग डिसऑर्डर से क्या मतलब है?

वजन को कोई आदर्श स्थिति नहीं होती, बल्कि यह हर व्यक्ति के लिए अलग तरह से तय होता है। जबकि मीडिया में अकसर इसे एक आदर्श नापतौल में प्रस्तुत किया जाता है। हम आनुवंशिक रूप से एक ही आकार या एक ही वजन के नहीं दिख सकते। ऐसा करने की कोशिश हमें ईटिंग डिसऑर्डर के चक्रव्यूह में फंसा देती है।

ईटिंग डिसऑर्डर की गिरफ्त में आने के बाद हम खानपान, वजन, लुक और डायटिंग संबंधी गलत आदतों के शिकार हो जाते हैं, जो आगे चलकर ‘बुलिमिया नर्वोसा’ और ‘एनोरेक्सिया नर्वोसा’ जैसे सिंड्रोम विकसित कर सकते हैं।

अपने आदर्श सेलिब्रिटी की तरह दिखने की कोशिश में लोग जितना समय, संसाधन और ऊर्जा खर्च कर रहे हैं, वह अविश्वसनीय है। यह जानने के लिए आपको भारत के किसी भी शहर या कस्बे में खुल रहे जिम और स्लिमिंग सेंटर पर नजर डालनी चाहिए, कि इनकी संख्या अचानक कितनी बढ़ गई है। जाहिर तौर पर सोशल मीडिया भी इसमें अहम भूमिका अदा कर रहा है।

हर दूसरे दिन कुछ चमत्कारिक डाइट प्लान और प्रोडक्ट लॉन्च किए जा रहे हैं। जबकि इनमें से किसी भी उत्पाद या डाइट प्लान की वैज्ञानिक और तर्कसंगत जांच नहीं की गई है। खासकर तब जब यह दीर्घकालिक स्वास्‍थ्‍य और कल्याण से जुड़े हैं।

आजीवन स्वस्थ रहने के लिए आहार संबंधी स्‍वस्‍थ आदतों और स्वस्थ जीवन शैली का कोई दूसरा विकल्प नहीं है। इसके अंतर्गत एक दिन में तीन बार भोजन और दो बार हल्के नाश्ते यानी स्नैक्स की योजना रखी गई है। ये सभी स्थानीय तौर पर उपलब्ध और ताजा पकाए हुए होने चाहिए।

अगर खाना, खाना और खाते रहना आपकी आदत बन गई है, तो यह आपके लिए एक तरह का ईटिंग अलर्ट है! चित्र : शटरस्टॉक

फि‍जिकल एक्टिविटी के संदर्भ में आपको अपने कार्यों के लिए आत्मनिर्भर होना होगा। इसके अलावा कम से कम 30 मिनट का शारीरिक व्यायाम जैसे सैर या फि‍र योग को अपनी दिनचर्या में शामिल करना होगा। अप्राकृतिक अत्यधिक शारीरिक गतिविधि लंबे समय तक नहीं चल सकती। साथ ही यह हमारे शरीर के चयापचय और भूख नियंत्रित करने वाले तंत्र में असंतुलन पैदा करती हैं।

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सोशल मीडिया और अन्य माध्यमों में फैलाए जा रहे पतले होने के अभियानों में हम खुद को झोंक देते हैं। जबकि सबसे जरूरी यह है कि जीवन में और भी कई महत्वपूर्ण पहलू हैं, जिन पर ध्यान दिया जाना जरूरी है।

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लेखक के बारे में

Dr Kumar is a Consultant Psychiatrist trained in England. He has been based in Bangalore for the last 7 years, although he visit England on a quarterly basis for Locum work and continuing my professional development.He is trained and worked in the national health service of UK for15 years. He has worked mainly in adult psychiatry (Depression, Anxiety disorders, OCD, Schizophrenia and Bipolar disorder, Addiction disorders) and also have extensive experience in working with children and the elderly.He has developed particular expertise in psychotherapeutic interventions and have applied these in a general Adult setting both in outpatient and inpatient settings.He has acquired qualifications in psychodynamic psychotherapy; interpersonal psychotherapy and cognitive behavioural psychotherapy. He has spent the last 7 years as a consultant developing these skills further. This has enabled me to practice truly in a holistic way.His style of psychiatry is very much an attempt to complete the bio-psycho-social jigsaw, this informs both his assessment and the subsequent management of patients.He has kept abreast with the latest psychopharmaceutical developments and Practice within the framework set by national institute of clinical excellence in the UK. This ensures that his practice is evidence-based and ethical. ...और पढ़ें

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