डिमेंशिया का कारण बन सकता है सामाजिक अकेलापन, खुश रहना है तो फैमिली के साथ रहें

यदि आपको लोगों के साथ ज़्यादा घुलना- मिलना पसंद नहीं है, तो यह आपके लिए समस्या का कारण बन सकता है। विज्ञान कहता है कि अकेलेपन के शिकार लोगों में ज्यादा होता है डिमेंशिया का जोखिम।
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आइसोलेशन बन सकता है डिमेंशिया का कारण। चित्र : शटरस्टॉक

ह्यूमन इज़ अ सोशल एनिमल (Human Is a Social Animal)। ये कहावत ऐसे ही नहीं बनी है। असल में लोगों से घुलना-मिलना न सिर्फ हमें आनंद देता है, बल्कि ये हमारे ब्रेन के बेहतर काम करने के लिए भी जरूरी है। कुछ लोगों को अकेले रहना पसंद होता है, तो कुछ पीपल फ़्रेडली होते हैं। आप एक्सट्रोवर्ट हों या इंट्रोवर्ट, अगर आप अपने ब्रेन की लाइफ बढ़ाना चाहती हैं और डिमेंशिया जैसी बीमारी के जोखिम से बचना चाहती हैं, तो यह जरूरी है कि आप लोगों से मिलती-जुलती रहें।

समाज में बने रहने, उन्नति करने और कुछ नया सीखने के लिए हमें लोगों की ज़रूरत है। भले ही हम लोगों से कम बात करें, लेकिन बात करना ज़रूरी है। क्योंकि अकेले रहना मानसिक स्वास्थ्य के लिए कई समस्याएं पैदा कर सकता है। यकीन नहीं होता, तो जानिए इस अध्ययन में क्या सामने आया?

अकेलेपन और मानसिक स्वास्थ्य के बारे में क्या कहता है विज्ञान?

जर्नल ऑफ न्यूरोलॉजी में प्रकाशित हुए शोध के अनुसार, सामाजिक अलगाव यानी अकेलापन मनोभ्रंश (Dementia) के उच्च जोखिम से जुड़ा हुआ है। अध्ययन में पाया गया कि सामाजिक अलगाव अवसाद और अकेलेपन जैसी कई समस्याओं जैसे डिमेंशिया के रिस्क को 26% तक बढ़ा सकता है।

इस अध्ययन में लगभग 460,000 से अधिक लोगों को शामिल किया गया, जो लंबे समय से आइसोलेशन में थे। उनमें से, लगभग 42,000 (9%) ने सामाजिक रूप से अलग-थलग होने की सूचना दी, और 29,000 (6%) ने अकेलापन महसूस किया। अध्ययन के दौरान, इनमें से लगभग 5,000 ने मनोभ्रंश यानी डिमेंशिया की समस्या विकसित की।

और भी हैं कारण

उम्र, लिंग, सामाजिक आर्थिक स्थिति, शराब का सेवन और धूम्रपान, और अवसाद और अकेलेपन जैसी अन्य स्थितियों सहित कारकों के समायोजन के बाद, शोधकर्ताओं ने पाया कि सामाजिक रूप से अलग-थलग व्यक्तियों में सीखने और सोच से जुड़े विभिन्न क्षेत्रों में मस्तिष्क के ग्रे पदार्थ की मात्रा कम थी।

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मानसिक स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है अकेलापन। चित्र ; शटरस्टॉक

ग्रे मैटर की कमी बनी डिमेंशिया का कारण

शोधकर्ताओं ने पाया कि जो लोग सामाजिक रूप से आईसोलेटेड थे, उनमें बिना सामाजिक अलगाव वाले लोगों की तुलना में डिमेंशिया विकसित होने की संभावना 26% अधिक थी। कुल मिलाकर, परिणामों से पता चला कि कम ग्रे मैटर वॉल्यूम उच्च सामाजिक अलगाव से जुड़े थे।

चीन के शंघाई में फुडन विश्वविद्यालय के प्रोफेसर और अध्ययन के लेखक जियानफेंग फेंग ने कहा, “सामाजिक अलगाव एक गंभीर स्वास्थ्य समस्या है, जिसके बारे में कोई इतना जागरूक नहीं है। यह अक्सर बुढ़ापे से जुड़ी होती है।”

“कोविड ​​​​-19 महामारी की वजह से सामाजिक अलगाव बढ़ा है। ऐसे में यह और महत्वपूर्ण है कि लोग आपस में मेल-जोल बढ़ाएं।”

सीडीसी के अनुसार अन्य स्वास्थ्य समस्याओं का भी कारण बन सकता है अकेलापन

सामाजिक अलगाव अकाल मृत्यु का भी कारण बन सकता है।

सामाजिक संबंधों में खराबी आना हृदय रोग के 29% जोखिम को बढ़ाता है।

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इतना ही नहीं, अकेलापन अवसाद, एंग्जाइटी और आत्महत्या का भी कारण बन सकता है।

भारतीय परिवार व्यवस्था हो सकती है मददगार

उपरोक्त शोध यह साबित करता है कि अकेलापन और सोशली आइसोलेट होना डिमेंशिया के जोखिम को बढ़ा सकता है। आंकड़े बताते हैं कि यह समस्या वृद्धावस्था से जुड़ी हुई है। ऐसे में भारतीय परिवार व्यवस्था मददगार साबित हो सकती है। वहां जहां तीन पीढ़ियां एक साथ रहती हैं, लोगों के आइसोलेट होने या अलग-थलग पड़ने के जोखिम कम होते हैं। हालांकि बिजी लाइफस्टाइल और महानगरों की आपाधापी में यह मुश्किल होने लगा है, पर मानसिक स्वास्थ्य और भावनात्मक संबल के लिए इस व्यवस्था पर पुनर्विचार किया जा सकता है।

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लेखक के बारे में

प्रकृति में गंभीर और ख्‍यालों में आज़ाद। किताबें पढ़ने और कविता लिखने की शौकीन हूं और जीवन के प्रति सकारात्‍मक दृष्टिकोण रखती हूं। ...और पढ़ें

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