लड़कों के मुकाबले लड़कियों में कम नजर आते हैं ऑटिज़्म के लक्षण,जानिए क्या है इसका कारण

ऑटिज़्म एक ऐसी स्थिति है, जो लगातार बढ़ती रहती है। यह ऑटिस्टिक बच्चे के दूसरों के साथ बातचीत करने की क्षमता पर असर डाल सकती है। हालांकि, अलग-अलग बच्चों में इसके लक्षण अलग-अलग हो सकते हैं।
girls aur boys me autism ke symptoms alag ho sakte hain
लड़कियों और लड़कों में अलग-अलग हो सकते हैं ऑटिज़्म के लक्षण। चित्र : अडोबीस्टॉक
Dr. Puja Kapoor Updated: 23 Oct 2023, 09:23 am IST
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सेंटर फोर डिज़ीज कंट्रोल ऐंड प्रीवेंशन (CDC) ने अनुमान लगाया है कि आठ साल के बच्चों में 44 में से 1 की ऑटिज़्म स्पेक्ट्रम (autism Spectrum) के तहत पहचान हुई। सीडीसी ने यह भी अनुमान लगाया है कि लड़कियों के मुकाबले लड़कों में इसके आंकड़े अधिक थे। लड़कियों में ऑटिज़्म का इलाज इसलिए कम हो सकता है, क्योंकि उनके अंदर ऑटिज़्म से जुड़ा सामान्य व्यवहार ज़रा कम ही नज़र आता है। इसे यूं भी कहा जा सकता है कि वे अपने लक्षणों को बेहतर तरीके से छुपा लेती हैं। ऐसा क्यों होता है और क्यों होते हैं लड़कों और लड़कियों में ऑटिज्म (autism in girls vs boys) के लक्षण अलग, इस बारे में जानते हैं विस्तार से।

समझिए ऑटिज्म के लक्षण (symptoms of autism)

ऑटिज़्म के कई लक्षण हैं, इसके लिए पसंदीदा शब्द है, ऑटिज़्म स्पेक्ट्रम डिसऑर्डर (ASD)। इससे जूझ रहे सारे बच्चों को लोगों से घुलने-मिलने या बात करने में दिक्कतें आती हैं। एएसडी के कुछ सामान्य लक्षण हैं-

  1. बारह महीने का होने के बावज़ूद अपना नाम सुनाई देने पर भी कोई प्रतिक्रिया नहीं देना।
  2. किसी आदेश का पालन करने में दिक्कत होना।
  3. जब कोई व्यक्ति किसी चीज़ को देखने को कहे, तो उसे नहीं देखना।
  4. सामाजिक तौर पर इस्तेमाल की जाने वाली भाषा का सीमित होना।
  5. नज़रें नहीं मिलाना।
  6. रूटीन में आए किसी बदलाव को अपनाने में दिक्कतें होना।
  7. इधर से उधर हिलना।
  8. सामान को किसी सीक्वेंस या लाइन में लगाना।
  9. कुछ खास शब्दों, लाइनों या आवाज़ों को दोहराना।
  10. कुछ विशेष आवाज़ों पर अजीब-सी प्रतिक्रिया देना या एक अलग ही आवाज़ निकालना।
  11. विजुअल, वास्टीबुलर, प्रोप्रियोसेप्शन से जुड़े सेंसरी इश्यु।
autism se grast bachcho ko social connection me dikkat aati hai
ऑटिज्म से ग्रस्त बच्चों को सामाजिक तालमेल बैठाने में मुश्किलें आती हैं। चित्र : अडोबी स्टॉक

इनमें से ज़्यादातर लक्षण बचपन में ही दिखने शुरू हो जाते हैं, हालांकि कभी-कभी उन्हें अनदेखा भी कर दिया जाता है। दूसरे लक्षण कई बार तब तक समझ नहीं आते, जब तक कि बच्चा बड़ा नहीं हो जाता।

कभी-कभी क्यों चूक जाते हैं पेरेंट्स 

लोग इन लक्षणों को देखने में कभी-कभी इसलिए भी चूक जाते हैं क्योंकि उनका लड़कों और लड़कियों के व्यवहार को लेकर एक खास तरह का नज़रिया होता है। ऐसा समझा जाता है कि लड़कों के मुकाबले लड़कियां शांत होती हैं और अकेले भी खेल सकती हैं।

हालांकि, कम बोलना और अकेले समय बिताना पसंद करना दोनों ही ऑटिज़्म के लक्षण हो सकते हैं। ऑटिज़्म के कुछ लक्षण लड़कियों के मुकाबले लड़कों में आम होते हैं। उदाहरण के लिए, बातों को दोहराने वाला व्यवहार और आवेग को नियंत्रण करने में कठिनाई होना।

लड़कों और लड़कियों में अलग हो सकते हैं लक्षण 

ये लक्षण एक ऑटिस्टिक लड़के में ऑटिस्टिक लड़की के मुकाबले ज्यादा नज़र आते हैं। ये लक्षण लोगों से बात करने और मिलने-जुलने में आने वाली कठिनाई वाले लक्षणों के मुकाबले ज़्यादा आसानी से समझे जा सकते हैं, इसलिए ऑटिज़्म के लक्षणों को लड़कियों में दिखने वाले लक्षणों के मुकाबले समझना ज़्यादा आसान होता है।

आम तौर पर लड़कियां या तो अपने इन लक्षणों को छुपा देती हैं या फिर सामाजिक व्यावहारिकता सीखने में अपना ज़्यादा समय और ऊर्जा देती हैं। इसलिए ऑटिस्टिक लड़कों के मुकाबले वे ज्यादा जल्दी दोस्ती कर लेती हैं। इससे उनका ऑटिज़्म छुप जाता है, क्योंकि ज्यादातर लोग सामाजिक व्यवहार सीखने में आने वाली परेशानी को ऑटिज़्म के प्रमुख कारणों में एक मानते हैं।

निदान में न करें गलती 

ऑटिज़्म का एक सामान्य गलत निदान मानसिक स्वास्थ्य का मुद्दा है। ऑटिज़्म के साथ-साथ कई सारे मेंटल हेल्थ से जुड़े मुद्दे भी हो सकते हैं। जैसे-बेचैनी, डिप्रेशन और पर्सनेलिटी डिसऑर्डर भी ऑटिज़्म के कुछ लक्षणों को साझा करते हैं, जिससे उसका गलत निदान भी हो सकता है।

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आटिज्म जागरूकता दिवस का उद्देश्य ऑटिज्म से पीड़ित लोगों के जीवन की गुणवत्ता में सुधार करने में मदद करने की जरूरत पर जोर डालना है। चित्र : एडोबी स्टॉक

इसके कारण कुछ लोगों को तनाव (स्ट्रेस) भी हो सकता है। लड़के और लड़कियों के व्यवहार में यह अलग-अलग ढंग से दिख सकता है। लड़कियां स्ट्रेस से कुछ इस तरह निपटती हैं कि उसका तुरंत लोगों को पता ही नहीं चल पाता, जैसे अपने-आप को नुकसान पहुँचाना।

लड़के अकसर स्ट्रेस वाली सिचुएशन को बाहर जता लेते हैं-उदाहरण के लिए, गुस्सा करके या फिर बुरा बर्ताव करके। उनका यह व्यवहार सबको नज़र आता है और इससे ऑटिज़्म का जल्द पता लगाने में भी मदद मिलती है।

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लक्षणों को छुपा लेती हैं लड़कियां 

लड़कियां अपने को लेकर ज्यादा जागरुक होती हैं और सोशली खुद को फिट करने को लेकर भी काफी सचेत होती हैं। इसका मतलब यह हो सकता है कि वे बचपन से ही ऑटिज़्म के लक्षणों को छुपा पाने में सक्षम होती हैं, इस तरह उनका इलाज भी फिर देरी से ही होता है।

हालांकि, जब उनकी उम्र बढ़ने लगती है और सामाजिक ताना-बाना और दोस्ती ज्यादा जटिल हो जाती है, तब उन्हें दूसरों से अपने आपको रिलेट करने में दिक्कतें आती हैं। इसका मतलब यह हो सकता है कि उनमें ऑटिज़्म का इलाज उनके टीनएज वाले सालों से पहले नहीं हो पाता।

इस तरह से, ऑटिज़्म को लेकर लोगों में समझ का कम होने से हेल्थ केयर प्रोफेशनल्स, टीचर और माता-पिता में लड़कियों के इन लक्षणों को अनदेखा करने की संभावना ज़्यादा रहती है।

ऑटिज़्म को लेकर एक स्टीरियोटाइप सोच के कारण कुछ ऑटिस्टिक लड़कियों का इलाज देरी से हो पाता है। इन स्टीरियोटाइप में शामिल हैं, यह सोच कि सारे ऑटिस्टिक लोगों की मैथ और साइंस में काफी दिलचस्पी होती है और ऑटिस्टिक लोग दोस्ती नहीं कर पाते। हालांकि, हर मामले में यही सच नहीं होता, जिसकी वजह से लड़कियों में कई बार ऑटिज़्म का इलाज नहीं हो पाता है।

लड़कियों में एक सिंड्रोम जिसे रेट सिंड्रोम का नाम दिया गया है, शायद मौजूद होता है, जो ऑटिज़्म में होता है, लेकिन इसका एक क्लिनिकल फीचर भी है, हाथ की ऐंठन। क्योंकि रेट सिंड्रोम विशेष तौर पर लड़कियों में मौजूद होता है। इसलिए इसे भी सावधानी से लड़कियों में ऑटिज़्म वाले लक्षणों में शामिल किया जाना चाहिए।

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Dr. Puja Kapoor is Pediatric Neurologist and Co-Founder of Continua Kids ...और पढ़ें

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