कोविड-19 से ठीक होने के छह महीने बाद भी हो रहे हैं रोगियों के ब्रेन में परिवर्तन: रिसर्च

कोविड महामारी से पूरी तरह उबरने के बावजूद मस्तिष्क के प्रभावित होने की आशंका बनी रहती है। हालिया भारतीय शोध इसी बात की पुष्टि करता है। शोध में कोविड-19 से ठीक होने के छह महीने बाद भी रोगियों के ब्रेन में परिवर्तन देखा गया।
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कोविड-19 से उबरने वाले मरीजों में फ्रंटल लोब और ब्रेन स्टेम में काफी अधिक संवेदनशीलता मूल्य थे। शोधकर्ताओं के अनुसार, ये मस्तिष्क क्षेत्र थकान, अनिद्रा, चिंता, अवसाद, सिरदर्द और संज्ञानात्मक समस्याओं से जुड़े हैं। चित्र : शटरस्टॉक
स्मिता सिंह Updated: 20 Oct 2023, 09:52 am IST
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कोविड महामारी के बाद मानव शरीर पर कई बुरे परिणाम देखने को मिल रहे हैं। दुनिया में हुए कई शोधों से यह पता चल चुका है कि कोविड संक्रमण का असर दिमाग पर पड़ता है। जर्नल ऑफ अल्‍जाइमर्स डिजीज में प्रकाशित एक रिपोर्ट में भी खुलासा किया गया कि कोविड-19 से संक्रमित बुजुर्गों को एक साल के भीतर अल्‍जाइमर्स रोग होने का जोखिम 50 से 80 प्रतिशत ज्‍यादा हो जाता है। पर हाल में भारत में किया गया शोध बुजुर्गों के साथ-साथ अधेड़ और युवा लोगों को भी सकते में डाल सकता है। यहां के शोधकर्ता कोविड से उबरे लोगों के दिमाग में परिवर्तन देखने (covid affects brain) की बात कहते हैं।

क्या है हालिया भारतीय शोध (Indian research on covid affects brain)

दिल्ली के भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान(Indian Institute of Technology) में शोधकर्ताओं की एक टीम ने कोविड-19 से उबर चुके रोगियों पर रिसर्च किया। उन लोगों ने इस शोध के लिए एक विशेष प्रकार के एमआरआई का उपयोग किया। उन लोगों ने कोविड-19 से ठीक होने के छह महीने बाद रोगियों के ब्रेन में परिवर्तन होने की बात कही है। एमआरआई के परिणामों से पता चला कि कोविड-19 से उबरने वाले मरीजों में फ्रंटल लोब और ब्रेन स्टेम में काफी अधिक संवेदनशीलता मूल्य थे। शोधकर्ताओं के अनुसार, ये मस्तिष्क क्षेत्र थकान, अनिद्रा, चिंता, अवसाद, सिरदर्द और संज्ञानात्मक समस्याओं से जुड़े हैं। शोधकर्ताओं ने मस्तिष्क के वेंट्रल डायनसेफेलॉन रीजन में भी महत्वपूर्ण अंतर पाया। यह क्षेत्र कई महत्वपूर्ण शारीरिक कार्यों से जुड़ा हुआ है। इसमें हार्मोन सेक्रेशन के लिए एंडोक्राइन सिस्टम के साथ समन्वय करना, सेरेब्रल कॉर्टेक्स को सेंसरी और मोटर सिग्नल भेजना, सर्कैडियन रिदम को संचालित करना भी शामिल है।

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कोरोना से उबरने के बावजूद  स्लीपिंग पैटर्न प्रभावित हो जाता है ।  चित्र : शटरस्टॉक

सर्कैडियन रिदम सोने और जागने की प्रक्रिया से सीधे तौर पर जुड़ा हुआ है। यह स्टडी कोरोना के कारण होने वाले जटिल स्वास्थ्य समस्याओं की ओर संकेत करती है। यदि संक्रमण के बाद व्यक्ति ठीक भी हो जाता है, फिर भी स्वास्थ्य समस्याओं के होने की आशंका बरकरार रहेगी।

कोविड-19 के मस्तिष्क पर पड़ने वाले प्रभावों का विश्लेषण

इस रिसर्च के लिए शोधकर्ताओं ने कोविड-19 के मस्तिष्क पर पड़ने वाले प्रभावों का विश्लेषण करने के लिए ससेप्टिबिलिटी वेड इमेजिंग (susceptibility weighted imaging) का उपयोग किया गया। इसमें कोविड से ठीक हुए 46 रोगियों और 30 स्वस्थ लोगों के इमेजिंग डेटा का विश्लेषण किया गया। लॉन्ग कोविड वाले रोगियों में थकान, नींद में परेशानी, ध्यान न देना और याददाश्त की समस्या सबसे अधिक रिपोर्ट किए गए लक्षण थे। शोधकर्ताओं के अनुसार, संवेदनशीलता पैरामैग्नेटिक कंपाउंड की असामान्य मात्रा की उपस्थिति को दर्शा सकती है, जबकि कैल्सीफिकेशन या आयरन युक्त पैरामैग्नेटिक अणुओं की कमी कम संवेदनशीलता जैसी असामान्यताओं के कारण हो सकती है। अध्ययन कोविड-19 के कारण न्यूरोलॉजिकल प्रभावों के नए पहलू पर प्रकाश डालता है। यह कोविड से उबर चुके लोगों में महत्वपूर्ण असामान्यताओं की रिपोर्ट करता है।

मस्तिष्क को महीनों तक गंभीर रूप से नुकसान पहुंचा सकता है कोविड

ब्रेन पर कोविड के प्रभावों को जांचने के लिए पहले भी काफी शोध हो चुके हैं। इसी क्रम में फ़्रांसीसी शोधकर्ताओं ने 1 अप्रैल से 30 जून 2020 तक कोविड के मरीजों पर राष्ट्रव्यापी सर्वेक्षण किया। जनसंख्या-आधारित तीन समूहों में 53,047 वयस्कों को रखा गया। ये सभी कोविड से जूझ चुके मरीज थे। शोधकर्ताओं ने पाया कि कोविड से उबरने के 1 साल बाद भी मस्तिष्क को महीनों तक कोविड गंभीर रूप से नुकसान पहुंचा सकता है। इसके कारण व्यक्ति में तनाव और अवसाद के लक्षण भी बहुत अधिक बढ़ गये। इसी तरह यूके में भी पोस्ट कोविड 700 से अधिक लोगों के ब्रेन की जांच की गई।

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कोरोना बाद डिप्रेशन और स्ट्रेस के लक्षण तो मरीजों में आम हैं ।चित्र : शटरस्टॉक

उनमें भी सार्स कोव 2 के इन्फेक्शन का असर देखा गया। शोधकर्ताओं ने ब्रेन टिश्यू डैमेज की संभावना जताई। बाहरी तौर पर भी यदि हम देखें तो कोरोना के मरीज संक्रमित होने के बाद लंबे समय तक अकेले रहते हैं। अकेलेपन से जूझते हुए उनमें तनाव और अवसाद का लक्षण तो आमतौर पर देखा जाता है।

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