उन्होंने मेरी आंखों की रोशनी छीन ली, पर हौसला नहीं छीन पाए, ये है एसिड अटैक सर्वाइवर कविता बिष्ट की कहानी

एक दुखद हादसे ने कविता को लंबे अवसाद और शारीरिक समस्याओं में धकेल दिया। पर कविता ने ठान लिया है कि अब किसी को इस तरह अवसाद में अकेला नहीं पड़ने देना।
Acid attack survivor kavita bisht
यह कहानी है, अदम्य साहसी और कभी हार न मानने वाली कविता बिष्ट की. चित्र : कविता बिष्ट

अल्मोड़ा की रहने वाली ये लड़की कभी हमारे और आपकी तरह एक आम जिंदगी जीती थी और सड़कों पर बेफिक्र घूमा करती थीं… सपनों से भरी हुई और ज़िंदगी के प्रति आशावान। परंतु एक बर्बर मानसिकता वाले शख्स ने उन पर ऐसिड फेंक दिया। अचानक हुए इस अप्रत्याशित हमले ने उन्हे संभलने का मौका नहीं दिया। वे सड़क पर मदद की गुहार लगाती रहीं और लोग गुजरते रहे।

2 फरवरी 2008 को अखबारों और टीवी चैनलों की सुर्खी बनी यह खबर हमारे और आपके लिए एक दिल दहला देने वाली घटना थी, जिसे हम पढ़कर कबका भूल चुके हैं। मगर, किसी के लिए यह एक अंतहीन संघर्ष की शुरुआत थी।

यह कहानी है, अदम्य साहसी और कभी हार न मानने वाली कविता बिष्ट की, जिन्होनें जीवन की चुनौतियों का डटकर सामना किया है और अपने सकारात्मक दृष्टिकोण और आत्मविश्वास के बलबूते आज हजारों लड़कियों का संबल बनी हुई हैं।

एसिड अटैक – एक ऐसा घाव जिसे कोई नहीं भर सकता

उस समय कानून इतना लचर था कि न अपराधी को कानून की तरफ से कोई सज़ा मिली और न ही उन्हें कोई मुआवज़ा। उन्हें न सिर्फ अपनी आंखों की रोशनी गवानी पड़ी, बल्कि उनकी नाक और कान भी क्षतिग्रस्त हो गए। उन्हें एक महीना आईसीयू में रहना पड़ा और यह बात उन्हें होश आने पर पता चली।

पहले से ही उनका परिवार आर्थिक तंगी से जूझ रहा था। परिवारवालों के पास इलाज के पैसे भी नहीं थे। सरकार की ओर से उस समय कोई समुचित राशि का प्रावधान नहीं था। छोटी – छोटी समाज सेवी संस्थाओं की मदद से उनकी कई बार सर्जरी हुई। उनका खूबसूरत चेहरा तो बिगड़ ही गया पर जो घाव उनके मन पर लगे हैं, उनकी भरपाई आज भी मुश्किल है।

कविता कहती हैं, “इस दुर्घटना के बाद मैं करीब 2 साल तक डिप्रेशन में रहीं। मुझे उस समय किसी की आवाज से भी डर लगने लगा था।”

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4 सितंबर 2021 को राजीव गांधी नेशनल एक्सीलेन्स अवार्ड फॉर कोरोना वॉरियर (Rajiv Gandhi National Excellence Award for Corona Warriors) से उन्हें सम्मानित किया गया है। चित्र : कविता बिष्ट

एक कदम आत्मनिर्भरता की ओर

इस दुर्घटना के बाद अपनी दृष्टि खोने की वजह से वे पूरी तरह से लाचार हो गईं थीं। तभी उन्हें दृष्टिहीन ट्रेनिंग स्कूल अल्मोड़ा में दाखिला लेने के लिए आमंत्रित किया गया। उन्होनें इसे एक अवसर के रूप में देखा और स्कूल गई। यहां उन्होनें सिलाई- कढ़ाई, खुद से सभी काम करना, कंप्यूटर चलाना, कैंडल और एनवेलप बनाना सीखा।

 

कविता बताती हैं कि उनकी मां ने हमेशा उनका साथ दिया और सुईं में धागा डालने जैसी छोटी चीज़ें उन्हें सिखाईं। कविता कभी हारने लगतीं तो उनकी मां उन्हें प्रेरित करती।”

आज उत्तराखंड में महिलाओं की आवाज़ हैं कविता

धीरे – धीरे कविता अपने परिवार का आर्थिक संबल बनीं और अपने जैसी कई महिलाओं की मदद करना शुरू किया। सरकार ने इनके सामाजिक कार्यों को देखते हुये उन्हें उत्तराखंड में महिलाओं के लिए ब्रांड एंबेसडर बनाया। वे पूरे राज्य में महिला सशक्तिकरण की आवाज़ बनी और 4 सितंबर 2021 को राजीव गांधी नेशनल एक्सीलेन्स अवार्ड फॉर कोरोना वॉरियर (Rajiv Gandhi National Excellence Award for Corona Warriors) से उन्हें सम्मानित किया गया है। इतना ही नहीं आज कविता 18 से भी ज़्यादा सम्मान और पुरस्कार पा चुकी हैं।

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आज वे रामनगर में इंदु समिति की मदद से ‘ Kavita’s Women Support Home’ चलाती हैं। जहां वे घर के आस-पास रहने वाली महिलाओं और लड़कियों को व्यावसायिक शिक्षा प्रदान कर रही हैं। साथ ही एसिड अटैक, यौन उत्पीड़न, घरेलू हिंसा से पीड़ित महिलाओं की सहायता करती हैं।

acid attack survivor kavita bisht
हर दिव्यांग व्यक्ति सब कर सकता है, बस जरूरत है उसे हौसला देने की! चित्र : कविता बिष्ट

हर दिन एक लड़ाई लड़ती हैं कविता

कविता कहती हैं कि ”एक लंबे वक़्त तक मैं खुद भी अपने चेहरे को छू नहीं पाती थी। मैं बार – बार अपना चेहरा ढकती रहती थी। मगर अब मैंने लोगों की परवाह करना छोड़ दिया है।

”मैं कभी – कभी सोचती हूं लोग बिना वजह खुद को लेकर शर्मिंदगी महसूस करते हैं, जबकि लोगों के पास भगवान का दिया सब कुछ है।”

”मुझे आज भी छोटी – छोटी चीज़ें परेशान करती हैं, जो मैं किसी से कह नहीं सकती जैसे मुझे इस गर्मी में चश्मा पहनने से परेशानी होती है, मगर मैं चश्मा नहीं उतार सकती सबकी तरह क्योंकि लोग मुझे देख नहीं पाएंगे!”

हर दिव्यांग व्यक्ति सब कर सकता है, बस आप उसे रोकें नहीं

कविता कहती हैं, ”समाज में मुझे आज भी लोग हतोत्साहित करने से पीछे नहीं रहते, पर मुझे आगे बढ़ना है। इसलिए मैं उनकी बातों पर ध्यान नहीं देती। मैं लोगों से कहना चाहती हूं कि अगर आप मदद नहीं कर सकते हैं, तो अपशब्द या उल्टा-सीधा न बोलें, मैं अपने पैरो पर खड़ी हूं, किसी पर आश्रित नहीं हूं, कृपया अपनी सोच बदलें।”

हर दिव्यांग व्यक्ति सब कर सकता है, बस जरूरत है उसे हौसला देने की!

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लेखक के बारे में

प्रकृति में गंभीर और ख्‍यालों में आज़ाद। किताबें पढ़ने और कविता लिखने की शौकीन हूं और जीवन के प्रति सकारात्‍मक दृष्टिकोण रखती हूं। ...और पढ़ें

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