योद्धा आपदाओं का इंतजार नहीं करते, ये है एचआईवी पीड़ितों को जीना सिखा रही निवेदिता झा की कहानी

कोरोनावायरस के कारण दुनिया भर में तनाव और अवसाद के मामले बढ़ रहे हैं। जबकि एचआईवी से ग्रस्‍त लोग तो हरदम तनाव में रहते हैं। ऐसे ही लोगों को उम्‍मीद की किरण दिखाती हैं निवेदिता।
निवेदिता हारे हुए लोगों को फि‍र से जीवन के लिए तैयार कर रहीं हैं।
निवेदिता हारे हुए लोगों को फि‍र से जीवन के लिए तैयार कर रहीं हैं।

कोविड-19 इस समय की जटिलतम समस्‍या है। हम में से अधिकांश लोग स्‍वास्‍थ्‍य, आर्थिक सहित कई अन्‍य समस्‍याओं का सामना कर रहे हैं। हम परेशान हैं कि घर से कब निकलेंगे। जबकि कुछ ऐस फ्रंटलाइन वर्कर हैं, जो पिछले डेढ़ साल से अनथक, चेहरे पर मुस्‍कान लिए दूसरों की मदद कर रहे हैं। ऐसी ही एक स्‍वास्‍थ्‍य सेवा कर्मी हैं निवेदिता झा।

नमस्‍कार। मेरा  नाम निवेदिता झा है। मैं अम्बेडकर मेडिकल कॉलेज, रोहिणी (दिल्ली) में मनोवैज्ञानिक सलाहकार हूं और एड्स एवं एचआईवी पॉजिटिव लोगों के साथ काम करती हूं। अंदाजा लगाइए जो लोग हरदम तनाव में रहते हैं, उनके लिए यह समय कैसा होगा। बस मेरा काम  इनके लिए सकारात्‍मकता बचाए रखना है।

मैं मूलत: बिहार से हूं और हिंदी एवं मैथिली में कविताएं लिखती हूं। यही वह समय होता है, जब मैं खुद को तनावमुक्‍त कर अगले दिन के लिए तैयार होती हूं।

कोई भी दुख हमेशा नहीं रहता

सुख और दुख जीवन के हिस्से हैं और इनकी अधिकता हमारे जीवन के संतुलन को विचलित करती है। गेटस के अनुसार ‘तनाव असंतुलन की दशा है, जो प्राणी को अपनी उत्तेजित दशा का अंत करने के लिए कोई कार्य करनें को प्रेरित करती है।’ कई प्रयोग हैं इस पर, इनमें ‘थार्नडाइक’ का प्रयोग बहुत प्रसिद्ध है।

निवेदिता झा
निवेदिता झा

मनोविज्ञान में अवसाद या डिप्रेशन के अर्थ मनोभाव संबंधी दुख से होता है, जो रोग या सिंड्रोम भी माना गया है। अवसाद की अवस्था में व्यक्ति स्वयं को लाचार या निराश महसूस करता है। ‘जब कुछ करनें का मन ही न हो, तो उसे हम साधारण भाषा में उदासी कहते हैं।’

थोड़ी मात्रा में तनाव या स्ट्रेस होना हमारे जीवन का एक हिस्सा होता है। यह कभी-कभी फायदेमंद भी होता है। जैसे किसी कार्य को करने के लिए हम स्वयं को हल्के दबाव में महसूस करते हैं। पर जब यही दबाव ज्‍यादा हो जाता है, तो यह काम में बाधा बनने लगता है।

हम जीतेंगे साथी

यहां कुछ अपने निजी अनुभव साझा करूंगी कि शुरूआत के कुछ समय जब सारी गाडियां बंद हो गईं, तो जिनके पास अपनें वाहन नहीं थे उन्हें हॉस्पिटल द्वारा मुहैया करवायी गई बस से आना पडता था। जिससे बहुत दूर तक पैदल ही चलना पडता था। मैं कई बार पैदल घर आई। कई बार थक कर हम पुलिस वालों से लिफ्ट ले लेते थे।

निवेदिता कविताओं से खुद को तरोताजा करती हैं।
निवेदिता कविताओं से खुद को तरोताजा करती हैं।

घर में आकर फिर सारे काम खुद करने, परेशान सी हो गई थी जिन्दगी। स्‍वास्‍थ्‍य कर्मचारियों की छुट्टी कैंसिल थी। पूरे साल हमने बिना किसी छुट्टी के काम किया। मगर ये आपदा इतनी बड़ी है कि हम में से हर कोई फि‍र दोगुनी उर्जा से जुट गया है।

बढ़ती गर्मी और पीपीई किट

ये मौसम सूती कपड़ों के अलावा कुछ और नहीं झेलने देता। उस पर यह पीपीई किट, जिसमें हवा भी पास नहीं होती। मैं तो चूंकि बीमार मरीजों के साथ सीधे संपर्क में नहीं थी, तब भी अजीब घुटन होती थी तमाम ताम झाम से।

तनाव और कोरोनावायरस

कोरोना फिर से बढ़ रहा है और मन में अज्ञात भय और आशंका जन्म ले रही है। ये दूसरी या तीसरी लहर है क्या? जीवन पटरी पर कब लौटेगा? भारत के स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय का कहना है कि कोरोना महामारी के दौरान इस बीमारी से पीड़ित 30 फ़ीसद लोग अवसाद से ग्रस्त हैं। मगर पिछले कुछ दिनों में इसमें कमी दिखाई दी थी।

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गली नुक्कड, चौराहे सभी जगह नियमों की धज्जी उड़ाते हम इसी बहस में शामिल थे। खूब दलीलें, चुनाव, धरना, बाजार और वहां की भीड़ सब कोरोना के मित्र ही बन रहे थे।

किसी का भी जाना अच्‍छा नहीं लगता

निवेदिता कहती हैं,“कुछ दिन पहले सब्जी बेचने वाली मुन्नी मिली थी। वो परेशान है, कह रही थी कि फिर क्या पैदल जाना होगा गांव? पिछली बार उसने अपनी बेटी को खो दिया। सात दिन में वो गांव पहुंची थी। दिल्ली में जिस मालिक के सर्वेंट क्वार्टर में वह रहती थी, वहां से पूरा परिवार निकल पड़ा। इस बार दोबारा लौटने के बाद वह वहाँ नहीं गई। पति रिक्शा चलाता है और वो झुग्गी में गुजारा करती है।”

मदद को हरदम तैयार रहती हैं निवेदिता
मदद को हरदम तैयार रहती हैं निवेदिता।

रौशनी किन्नर अभी-अभी फिर काम पर लौटी थी। कहने लगी, “अब तो टोली बाजार भी कम देते हैं। बाजार में पैसा कहां है!

ऐसे हजार लाख उदाहरण हैं जो कि अभी उस मार से उठ भी नहीं पाए थे और हालात ने फिर से उन्‍हें परेशान कर दिया है।

स्मृतियां अब भी परेशान कर रहीं हैं और हालात दिन ब दिन बिगड़ते जा रहे हैं। दिल्ली समेत कई राज्यों में लॉक डाउन की घोषणा हो गई है।

लॉकडाउन और एचआईवी के मरीज

यहां मैं HIV मरीजों के बारे में थोड़ी बात जरूर करना चाहूंगी। ज्‍यादातर मरीज पूरी बीमारी के दौरान तनाव और अवसाद में रहते हैं। यही उनका सबसे बड़ा दुश्‍मन भी है। और इसी से हमें उन्‍हें बचाना भी है। उन्‍हें यह मालूम होना चाहिए कि लॉकडाउन के बावजूद दवा के लिए परेशान होने की जरूरत नहीं है।

अगर आपके आसपास कोई एचआईवी या एड्स का मरीज है, तो इन बातों का ध्‍यान रखें

1 जो व्यक्ति HIV+ हैं उनको हर दिन दवाई खानी पड़ती है। इसे कभी नहीं छोड़ना होता है। उनके लिए सारे ART सेंटर खुले हैं और आगे भी रहेगें।

एड्स के बारे में आपको इन फैक्ट्स के बारे में पता होना जरूरी है। चित्र:शटरस्टॉक

एड्स के बारे में आपको इन फैक्ट्स के बारे में पता होना जरूरी है। चित्र:शटरस्टॉक2 आप आकर दवाई ले लें, पहले भी ले सकते हैं। अगर कोई बीमार है, बूढा है उनकी व्यवस्था हमारे साथ जुड़े एनजीओ कर रहे हैं। आपके कार्ड के पीछे उनका फोन नंबर है। फोन करके जानकारी लें।

3 एक बात और, इन दिनों अगर प्राइवेट या सरकारी कहीं से भी जांच में आप पॉजिटिव आये हैं, तो चिंतित न हों। सुविधा देखकर ही अस्पताल जाएं।

4 ये संक्रमण दो-चार दिन में जड़ से खत्म नहीं होते, ये आजीवन चलने वाले उपचार (life long treatment) हैं । दवा शुरू करके आप स्वस्थ रह सकते हैं। सरकार नें पिछले साल से ही ये व्यवस्था कि है कि कोई मरीज अगर कहीं फंस जाता है, तो वह वहां के नजदीकी सेंटर से दवाई ले सकता है।

ये पिछली बार भी कारगर था और इस बार भी आप कर सकते हैं। जैसे ट्रक से अगर कोई अमरावती जाता है और वहां लॉकडाउन लग जाता है, तो अपनी ग्रीन बुक दिखाकर वो दवाई ले लकता है।

इन बातों को गांठ बांध लें

  1. दवाई रोज लें, किसी भी कारण से छोडें नहीं।
  2. अभी जरूरी नहीं कि प्रोटीन युक्त खाना ही खाएं, जो उपलब्ध है उसका सेवन करें।
  3. खुश रहें।
  4. घर से कम निकले, जरूरत पड़नें पर ही निकलें। क्‍योंकि आपकी प्रतिरोधक क्षमता कोरोना से लडनें में पिछड़ सकती है।
  5. घबरायें नहीं, नये प्रयोग न करें, नई आयुर्वेदिक और अन्य दवाईयां आपको प्रभावित कर सकती हैं।
  6. गूगल आपके लिए ज्‍यादा मददगार नहीं हो सकता।
  7. मास्क, रूमाल का प्रयोग करें, जो आपको टीबी से भी बचाएगा।
  8. इस बार कईयों नें वैक्सीन ली है और सुरक्षित है। बचे लोग भी सरकारी गाईड लाईन के तहत जब भी अवसर मिले, वैक्‍सीन लें।
  9. योग करें, सब स्वस्थ रहेगें ।

मित्रों, ध्‍यान रहे कोई भी परेशानी ज्यादा दिन तक नहीं ठहरती। जैसे रात की कालिमा सुबह के आते ही गायब हो जाती है। हम भी साथ रहेंगे और जीतेंगे।

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ये बेमिसाल और प्रेरक कहानियां हमारी रीडर्स की हैं, जिन्‍हें वे स्‍वयं अपने जैसी अन्‍य रीडर्स के साथ शेयर कर रहीं हैं। अपनी हिम्‍मत के साथ यूं  ही आगे बढ़तीं रहें  और दूसरों के लिए मिसाल बनें। शुभकामनाएं! ...और पढ़ें

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