चार कदम अकेले चलते डरती थी, आज हैं रेसवॉकर चैंपियन, पढ़िए रेनू कादियान की सफलता की कहानी

सीमित संसाधन, घरेलू हिंसा और दो बच्चों की जिम्मेदारी के बावजूद रेनू कादियान ने सपने देखना नहीं छोड़ा। क्योंकि सपने ही हैं, जो आपको हमेशा जिंदा रखे रहते हैं।
adbhut jazbe ki misal hain Renu Kadian
रेनू कादियान अद्भुत जज़्बे की मिसाल हैं।

ये दुनिया चढ़ते को चढ़ाती है, और गिरते को और गिराती है। एक संघर्षरत महिला जब लोगों के ताने सुनती है, तो उसकी राह और मुश्किल हो जाती है। पर हर आहत व्यक्ति अवसाद में नहीं चला जाता। कुछ स्त्रियां इस लड़ाई में और मजबूत होकर लौटती हैं। ऐसी ही रेनू कादियान की कहानी। घरेलू हिंसा, आर्थिक तंगी और बढ़ती हुई उम्र के बावजूद उन्होंने हिम्मत नहीं छोड़ी। 35 की उम्र में एक नया सपना देखा और उस क्षेत्र में एक रिकॉर्ड कायम किया। ओलंपिक की तैयारी कर रही रेनू कादियान की कहानी, हर उस स्त्री की जीत है, जो सपने देखने और उन्हें पूरा करने की हिम्मत रखती है।

जानिए कौन हैं रेनू कादियान 

रेनू कादियान एक अंतरराष्ट्रीय एथलीट, एशियाई मास्टर रजत पदक विजेता रेसवॉकर हैं। 20 अक्टूबर 2021 से लेकर 21 अक्टूबर 2021 तक लगातार 24 घंटे रेसवॉकिंग करके इतिहास रचने वाली रेनू कादियान की कहानी बेमिसाल है। यह अपनी तरह का पहला प्रयास था और इसके लिए रेनू अपने उस संकल्प को दोहराती हैं कि स्त्रियों की शक्ति के बारे में अभी यह दुनिया बहुत कम जानती है।

उन्होंने पहले प्रयास में 21 साल का राज्य रिकॉर्ड और 15 साल का राष्ट्रीय रिकॉर्ड तोड़ा है। वे वर्ल्ड मास्टर्स रैंकिंग 2018 के आधार पर एशिया में पहली रैंक और विश्व में 22वीं रैंक हासिल की। स्पेन 2018 में आयोजित 5000 मीटर (5वीं रैंक) 10 किमी (8वीं रैंक) और 20 किमी रेसवॉकिंग इवेंट में वर्ल्ड मास्टर एथलेटिक चैंपियनशिप में भारत का प्रतिनिधित्व किया है।

वे ओपन नेशनल ताइक्वांडो चैंपियनशिप, मार्शल आर्ट और गोल्ड मेडलिस्ट  डबल पोस्ट ग्रेजुएट हैं। और अब स्पोर्ट्स में तीसरी पोस्ट ग्रेजुएट डिग्री हासिल कर रही हैं।

खट्टे-मीठे कमेंट्स सफर में साथ-साथ हैं 

“तुम दौड़ोगी?”, “ये भी कोई खेल है?”, “इन सब में समय बर्बाद करने के बजाय, घर संभालों!” ये वे ताने थे, जो रेनू को मिले जब उन्होंने रेसवॉकिंग में भविष्य बनाने की तैयारी की। रेनू कादियान कहती हैं, “मैं अपने निर्णय के बारे में की गई टिप्पणियों और प्रश्नों की संख्या पर एक किताब लिख सकती हूं। 35 साल की उम्र में दौड़ में भाग लेने के लिए मुझे बहुत संघर्ष करना पड़ा है।”

वह कहती हैं, “भारत में, आपके जीवन के बारे में जो टिप्पणियां की जाती हैं, वे आगे लाने वाली कम और  पीछे खींचने वाली ज्यादा हैं। मुझे पिछले कुछ वर्षों में दोनों का आनंद मिला है। खेल मेरे लिए एक दवा रहा है, खासकर जब मेरे पति ने मेरे साथ दुर्व्यवहार करना शुरू किया। इसके बावजूद मैं अपने लक्ष्य के प्रति फोकस्ड रही।”

बच्चों को स्टेडियम ले जाने से नेशनल चैंपियन बनने तक 

अपने मार्शल आर्ट ट्रेनिंग के बारे में रेनू बताती हैं, “प्रतिस्पर्धी खेलों के साथ मेरी यात्रा ताइक्वांडो केे एक ऐसे संस्थान के साथ शुरू हुई, जहां मैं अपने बच्चों को लेकर जाया करती थी। मुझे लगा कि मैं भी इसमें हिस्सा ले सकती हूं। इस तरह दो बच्चों की मां होने के बावजूद मैंने ओपन कैटेगरी में ओपन नेशनल ताइक्वांडो चैंपियनशिप में स्वर्ण पदक जीता। प्रोफेशनल लेवल पर खेलों के साथ यह मेरा पहला कदम था।”

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यूट्यूब के वीडियो ने करवाया रेस वॉकिंग से परिचय 

रेनू बताती हैं, “रेस वॉकिंग के बारे में मैंने सबसे पहले एक यूट्यूब वीडियो से जाना। वहां मैंने देखा कि ये एक अलग तरह का खेल है। जिसकी शैली बिल्कुल अलग तरह की है और सहनशक्ति और फिटनेस के साथ ही इसमें हिस्सा लिया जा सकता है। इस तरह मेरा रुझान रेसवॉकिंग की तरफ बढ़ा।”

Renu ab olympic ki taiyari kar rahin hain
रेनू अब ओलंपिक की तैयारी कर रहीं हैं।

वे आगे बताती हैं, “एक बार एक स्टेडियम में मैंने एक व्यक्ति को देखा, जोे ठीक उसी तरह चल रहे थे जैसा मैंने यूट्यूब वीडियो में देखा था। वे रेसवॉकिंग के प्रोफेशनल कोच थे। मैं उनके पास गई और पूछा कि क्या वह मुझे ट्रेन कर सकते हैं? और उनका जवाब था न!

उन्हें लगा कि मैं कोई कॉलेज जाने वाली लड़की हूं और बस मजाक में यह सब पूछ रही हूं। पर मैंने उनसे दोबारा गुजारिश की और पैशन के बारे में उन्हें बताया। इस बार वे तैयार हो गए और उन्होंने कुछ महीने बाद बांग्लादेश में होने वाले एक टूर्नामेंट के लिए तैयार करना शुरू कर दिया। वह शुरूआत थी और उसके बाद यह सफर अब तक जारी है। मैंने कई रेसों में भारत का प्रतिनिधित्व किया और एशियन मास्टर्स में रजत पदक जीता। फिलहाल मेरा नाम एशियन बुक ऑफ रिकॉर्ड दर्ज है।”

तिरंगा लहराना है मेरे जीवन का लक्ष्य 

अपने सपनो के बारे में बताते हुए वे कहती हैं, “खेल का एक पहलू जिसने मुझे हमेशा प्रेरित किया है, वह है भारतीय ध्वज को ऊंचा उड़ते हुए देखना। यह जरूरी नहीं कि पदक जीतने से संबंधित हो। लेकिन मैं आज जो कुछ भी हूं, वह अपने देश के ही कारण हूं। मुझे याद है जब मैं स्पेन में प्रतिस्पर्धा कर रही थी, तो मेरे आस-पास के एथलीट यह जानकर चौंक गए थे कि मैंने केवल 7 महीने की ट्रेनिंग में दौड़ना सीखा था। उनमें से कुछ 14-15 वर्षों से प्रतिस्पर्धा और प्रशिक्षण ले रहे थे और इसके बावजूद मैं उनमें से कुछ को हराने में सफल रही।”

अपनी प्रतिस्पर्धा के बारे में रेनू कहती है, “मैं स्पेन में आयोजित 2018 विश्व मास्टर एथलेटिक्स चैम्पियनशिप में 5000 मीटर रेस वॉकिंग इवेंट में 5वें स्थान पर रही। मैं इकलौती भारतीय थी, जो इवेंट को खत्म करने में कामयाब रही। असल में रेस वॉकिंग इवेंट के दौरान बहुत सारे एथलीट हारकर बाहर हो जाते हैं। जबकि मैं एक ऐसे देश का प्रतिनिधित्व कर रही थी, जो रेस वॉकिंग डोमेन में लगभग अज्ञात था। मैं अपने देश को वहां स्थापित करना चाहती थी।”

घरेलू हिंसा के बावजूद की रिकॉर्ड की तैयारी 

रेनू बताती हैं, “मैं अपने पति के लगातार दुर्व्यवहार का सामना कर रही थी। वह दिल्ली में कड़ाके की ठंड का मौसम था और लगातार प्रैक्टिस से मेरे पैरों में दर्द रहने लगा था। घरेलू हिंसा की शिकार होने के बावजूद मैंने अपना जज़्बा नहीं खाेया और सीमित संसाधनों में भी सर्वश्रेष्ठ देने का प्रयास किया। हालांकि मुझे इस बार भी सरकार से कोई आर्थिक मदद नहीं मिली। मेरे माता-पिता की ओर से दी जा रही आर्थिक मदद का ही नतीजा था कि मैं टूर्नामेंट और ट्रेनिंग के लिए खर्च जुटा पाई। 

ओलंपिक की तैयारी पर है ध्यान 

अपने भविष्य के बारे में रेनू का कहना है, “मेरा सपना ओलंपिक है और जब तक मैं वह हासिल नहीं कर लेती, तब तक मेरी ट्रेनिंग जारी रहेगी। मेरा इस खेल में हिस्सा लेना सिर्फ एक खिलाड़ी का आना नहीं है, बल्कि यह उस संघर्षरत औरत की जीत है, जिसके बारे में कहा गया था कि वह चार कदम भी अकेले नहीं चल पाएगी। अभी तक मैंने बस 24 घंटे लगातार चलने का रिकॉर्ड बनाया है, पर मुझे अभी और भी बहुत लंबा चलना है।”

वह बताती हैं, ” केवल 4 महीने की ट्रेनिंग के साथ, मैंने 150.7 किमी की पैदल दूरी तय की। अपने दो बच्चों की जिम्मेदारी अकेले निभाते हुए भी मैं अपना सपना भूली नहीं हूं। मैंने उन लड़ाइयों का भी सामना किया, जो मैंने नहीं चुनी थीं। इसलिए मैं चाहती हूं कि हर स्त्री को उसका वाजिब हक मिले। ये दुनिया औरतों को कमतर न समझे।”

उम्र बस एक नंबर है 

35 की उम्र में अपने खेल की शुरुआत करने वाली रेनू कादियान वाकई इस कहावत को सच करती हैं, कि उम्र बस एक नंबर है। हालात जैसे भी रहे, उन्होंने हार नहीं मानी। और अभी बहुत आगे जाने का सपना उनकी आंखों में है।

रेनू कहती हैं, “मेरी जीत, मेरी अकेली की नहीं है। मैं अपनी सफलता को स्त्री सशक्तिकरण के रूप में स्थापित करना चाहूंगी। अभी के लिए मेरा लक्ष्य, सिर्फ ओलंपिक में भाग लेना है। मुुझे भरोसा है कि ईश्वर मुझे आधे रास्ते में टूटने या रुकने नहीं देगा।”

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ये बेमिसाल और प्रेरक कहानियां हमारी रीडर्स की हैं, जिन्‍हें वे स्‍वयं अपने जैसी अन्‍य रीडर्स के साथ शेयर कर रहीं हैं। अपनी हिम्‍मत के साथ यूं  ही आगे बढ़तीं रहें  और दूसरों के लिए मिसाल बनें। शुभकामनाएं! ...और पढ़ें

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