कोरोना वायरस एक साल से हमारे साथ है। हम अभी भी नहीं जानते कि यह कब जाएगा या कभी जाएगा भी या नहीं। ब्रिटेन व साउथ अफ्रीका में नए स्ट्रेन आने की खबर ने तो वेक्सीन पर संदेह पैदा कर दिये। जब चीन ने पहली बार 31 दिसंबर, 2019 को विश्व स्वास्थ्य संगठन को कोरोनावायरस के मामलों की सूचना दी, तो इसे निमोनिया का एक रहस्यमय नया स्ट्रेन बताया गया था। तब तक इसका कोई नाम भी नहीं था।
दो हफ्तों के भीतर ही चीनी वैज्ञानिकों ने वायरस के जेनेटिक कोड की पहचान कर इसे कोविड-19 नाम दे दिया। फिर आनन फानन में तीन सप्ताह में ही परीक्षण किट बना कर बाजार में उतार दी। अब सिर्फ 11 महीने से कुछ अधिक दिनों में वेक्सीन भी बाजार में आ गई। जिस अद्भुत गति से हमने कोरोनावायरस के बारे में सीखा है वह अभूतपूर्व लग रहा है।
2020 जाते-जाते 8 करोड़ कोविड-19 मामलों और लगभग 20 लाख मौत की सूचना हमें है। एक साल बाद भी हम कोविड-19 के बारे में बहुत कुछ नहीं जानते। हम नहीं जानते कि यह वायरस कैसे शुरू हुआ और कैसे इस महामारी का अंत होगा!
रोचेस्टर इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी में बायोलॉजी की एसोसिएट प्रोफेसर मौरीन फेरान ने कहा, हमने महामारी से जितना कुछ सीखा है, कम है। “यह वायरस अभी वैज्ञानिकों और सार्वजनिक स्वास्थ्य कर्मियों को दशकों के लिए व्यस्त रखने जा रहा है।”
वेक्सीन खोज के शोर में सबसे बुनियादी सवाल गायब हो गया लगता है कि वायरस की उत्पत्ति का रहस्य क्या है? वायरस की उत्पत्ति भ्रम और षड्यंत्र के सिद्धांतों से शुरू हुई और दोषारोपण पर अटक कर रह गई।
ज्यादातर वैज्ञानिक सहमत हैं। कोविड-19 , एक प्रकार का वायरस है, जो आम सर्दी से लेकर सार्स जैसे हर रोग के लिए ही नहीं, अब तक मौजूद हर मानवीय व्याधि के लिए जिम्मेदार है। यानी वैज्ञानिक मानने लगे हैं कि कोविड-19 संसार में मौजूद हर बीमारी को उत्पन्न करने में सक्षम है।
जब कोविड-19 पहली बार पहचाना गया था, यह एक श्वसन बीमारी के रूप में देखा गया था। लेकिन कुछ ही महीनों में इसके अनेक लक्षण और जटिलताओं की एक श्रृंखला स्पष्ट होने लगी थी, जो अभी तक जारी है।
कई लोग गंध खो देते हैं। उल्टी दस्त से लेकर हृदय, किडनी, ब्रेन तक को बीमार कर सकता है कोरोनावायरस। अगस्त में ब्रिटिश मेडिकल जर्नल में प्रकाशित एक अध्ययन में पाया गया कि लगभग 10% रोगियों को 12 सप्ताह से अधिक समय तक चलने वाली कोविड-19 एक लंबी बीमारी है।
यह भी नहीं पता कि और संकेत क्या हो सकते हैं या क्या बीमारी हो सकती है। नवंबर में जर्नल एनाल्स ऑफ इंटरनल मेडिसिन में प्रकाशित एक शोध पत्र में एक ऐसा मामला मिला है, जहां 2 साठ वर्षीय समान जुड़वां भाई कोविड-19 से संक्रमित हुए थे, लेकिन दोनों में अलग परिणाम थे।
एक जुड़वां भाई कि तो जटिलताओं के बिना दो सप्ताह के बाद छुट्टी हो गई थी। जबकि दूसरे को आई सी यू में स्थानांतरित करना पड़ा, जो महीनों तक वेंटिलेटर पर रहा। यह भी सोचने कि बात है यह रोग कैसे एक ही उम्र के लोगों को अलग-अलग तरीके से प्रभावित करता है।
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कस्टमाइज़ करेंवायरोलोजिस्ट कोलिग्नन कहते हैं, “हर व्यक्ति की जेनेटिक्स अलग होती है। इसलिए कुछ लोगों में संक्रमण का सामना करने की ताकत दूसरों की तुलना में बेहतर हो सकती है।” जैसे महिलाओं की तुलना में पुरुष अधिक असुरक्षित होते हैं कोरोना में ही नहीं हृदय आघात में भी ।
वैज्ञानिक कहते हां बच्चे कोरोनावायरस से कम गंभीर संक्र्मित क्यों होते हैं – क्योंकि उनकी नाक में ACE2 रिसेप्टर्स की संख्या कम होती है। ये रिसेप्टर्स ही तय करते हैं कि कैसे कोरोनावायरस हमारी कोशिकाओं में जाता है। लेकिन समझ पाना मुश्किल है कि यह उम्रदराज लोगों में अधिक क्यों होता है और इन्हीं लोगों में कोरोनावायरस से इतनी उच्च मृत्यु दर क्यों है।
“उम्र में ऐसा क्या है, जो कोरोनावायरस के प्रति आपको इतना अधिक संवेदनशील बना देता है?”
कॉलिग्नन ने पूछताछ की । हमारे पास डेटा है, लेकिन मुझे नहीं लगता कि हमें इस बारे में सभी जवाब मिल गए हैं।
पिछले साल जनवरी में ही इस बात की पुष्टि हुई कि यह वायरस मानव से मानव तक फैल सकता है। साल बीत जाने पर भी इस बात पर बहस है कि यह वास्तव में फैलता कैसे है। वैज्ञानिकों का कहना है कि वायरस जिस महत्वपूर्ण तरीके से फैल रहा है, वह हवा बूंदें (एयर ड्रॉपलेट्स) हैं।
रोगी की खांसी या छींक से ये बूंदें एक या दो मीटर के बाद जमीन पर गिरती हैं और मास्क उनके प्रसार को रोकने में मदद कर सकते हैं।
लेकिन कुछ वैज्ञानिकों का तर्क है कि वायरस एयरोसोल द्वारा भी फैलाया जा रहा है-एयरोसोल, एयर ड्रॉपलेट्स से बहुत छोटे कण होते हैं। जो घंटे भर तक के लिए हवा में रह सकते है और लंबी दूरी की यात्रा कर सकते हैं। कोलिग्नन कहते हैं, अगर ऐसा है तो कपड़े के मास्क एयरोसोल ट्रांसमिशन से रक्षा नहीं कर सकते।
कॉलिग्नन का कहना है कि जहां एयरोसोल ट्रांसमिशन हो सकता है। वहीं ऐसा लगता है कि ज्यादातर संक्रमण बूंदों के कारण ही होते हैं। अधिक ध्यान घर के अंदर हवा के प्रवाह के प्रभाव पर रखा जाना चाहिए। हाल ही में एक दक्षिण कोरियाई अध्ययन में पाया गया कि वायरस बूंद दो मीटर से अधिक दूर तक एयर कंडीशनिंग इकाई से हवा के प्रवाह के कारण लोगों को संक्रमित कर सकता है।
फेरान नामक वायरोलोजिस्ट के अनुसार एक अन्य प्रश्न यह भी हैं कि किसी को संक्रमित होने के लिए कोरोनावायरस की कितनी खुराक (वायरल लोड) की जरूरत है।
एक अन्य जवलन्त सवाल और है कि एक बार संक्रमण के बाद व्यक्ति कितने दिन इम्यून रहेगा और कोरोना अथवा उससे जनित रोग उसे दोबारा होगा या नहीं।
दोबारा संक्रमण का पहला केस हांगकांग विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं ने रिपोर्ट किया था। वहां एक 33 वर्षीय व्यक्ति कोविड-19- संक्रमित होने के 4 महीने बाद पुनर्संक्रमित हो गया था।
उसके बाद अनेक अन्य देशों से भी पुन: संकर्मण के मामले आने लगे।
जिससे दो महत्वपूर्ण सवाल उठ खड़े हुए
1- क्या टेस्ट किट ठीक काम कर रहे हैं? कहीं ऐसा तो नहीं कि संक्रमित व्यक्ति आम फ्लू से पीड़ित था पहली या दूसरी बार या दोनों बार और टेस्ट गलत थे?
2 – अगर टेस्ट ठीक थे, तो जब नेचुरल इन्फेक्शन इम्युनिटी नहीं दे सकता, तो वैक्सीन कैसे प्रभावित करेगी ?
कोलिग्नन ने कहा या वास्तव में बड़ा सवाल है, तो पिछला या पहला संक्रमण कब तक वायरस से प्राकृतिक प्रतिरक्षा करता है? वैज्ञानिकों द्वारा अब भी इनके सवाल खोजे जाने बाकी हैं।
सच है-हम नहीं जानते कि एक टीका भी कब तक प्रतिरक्षा देगा। कॉलिग्नन ने कहा, वैज्ञानिकों का अनुमान भर है कि यह टीका कई वर्षों तक किसी न किसी प्रकार की प्रतिरक्षा प्रदान करेगा। “लेकिन लब्बो लुआब यह है कि हमें अभी तक पता नहीं है।” वैज्ञानिक वैक्सीन के बारे में इतने आशावादी तो हैं कि इनसे दीर्घकालिक दुष्प्रभावों की संभावना नहीं है ।
लंदन के फ्रांसिस वायरल संस्थान के वैज्ञानिक जोनाथन स्टोए कहते हैं, “मुझे लगता है कि जोखिम वैक्सीन की बजाए वायरस से अधिक है।” लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि वह प्रतिरक्षा कब तक करता रहता है। हम यह भी नहीं जानते कि वायरस रूपांतरित होगा और ऐसा होने पर टीके को अप्रभावी कर देगा।“
एक अन्य वैज्ञानिक फेरान ने कहा, ”नए टीकों में से कुछ mRNA प्रौद्योगिकी है, जिसे व्यापक रूप से पहले कभी इस्तेमाल नहीं किया गया है। अत: अभी तक कुछ भी कह पाना संभव नहीं है। केवल अटकलें ही लगाई जा सकती हैं।
दुनिया कई टीकों पर उम्मीद लगाए हैं, लेकिन जल्दबाजी ठीक नहीं है। क्योंकि
1 पहले तो यह भी कह पाना असंभव है कि हर्ड इम्युनिटी हेतु दुनिया की कम से कम 80 % आबादी को वैक्सीन में कितना वक्त लगेगा।
2 क्या 80 % आबादी इसके लिए तैयार होगी ?
3 क्या वेक्सीन वाकई प्रभावी होगी?
पूरी संभावना है कि हमें बहुत अरसे तक वायरस के साथ रहना पड़ सकता है। मानव इतिहास में केवल एक वायरस (स्माल पोक्स) को वैक्सीन द्वारा खत्म घोषित किया गया है। अब सवाल हैं कि कोरोनावायरस हमारे साथ कितनी देर तक रहेगा, क्या वायरस एक नया प्रारूप (स्ट्रेन) म्यूटेट करेगा अगर हां तो क्या यह स्ट्रेन वायरस से कम घातक या अधिक संक्रामक होगा है।
ब्रिटेन ने हाल ही में घोषणा की है कि उन्होंने कोरोनावायरस के एक नए तनाव की पहचान की है। जो पुराने स्ट्रेन से 70 % अधिक संक्रामक प्रतीत होता है। स्टोए कहते हैं कि वे इस बात से चिंतित हैं कि हमें अभी भी इस महामारी से निपटने के लिए सही तरीका नहीं मिला है।
हमें अब भी इस तरह के प्रबंध करने हैं कि महामारी को रोकना यही सोचना सीखना है प्र्बंध करना है कि भविष्य की महामारी को रोकना सीखना है।